कानून नहीं, योगमय जीवन से बनेगी बात

कानून नहीं, योगमय जीवन से बनेगी बात

यौन हिंसा और पशुवत व्यवहार अब आम बात हो गई है। किशोर वय के या उनसे छोटे बच्चे भी इसके अपवाद न रहे। ऐसी खबरों से हैरानी होती है और चिंता भी। फिर मन में सवाल कौंध जाता है कि आखिर अपरिपक्व बच्चे इतने आक्रामक क्यो होते जा रहे हैं? ऐसा क्यों है कि कोई शनमुग इंटरनेट का इस्तेमाल करके चांद पर विक्रम के टुकड़ों को ढूंढ़ निकालता है तो दूसरी ओर किशोर वय के लाखों लड़के पोर्न साइट्स पर महिला चिकित्सक के साथ दरिंदगी के वीडियो तलाशते रहते हैं? क्या यह खराब संस्कारों या खराब संगति का ही असर है? दरिंदगी और बीमार मानसिकता से निजात क्या कानून से संभव है?

यदि केवल कानून से बात बननी होती तो दिल्ली के निर्भया कांड के बाद बने सख्त कानूनों के रहते हैदराबाद या देश के अन्य भागों में कई-कई खौफनाक वारदातें हो पातींनेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एसीआरबी) के आंकड़े देख रहा था, जिसके मुताबिक बीते साल बीते साल 32,559 महिलाओं के साथ बलात्कार किए गए। 10,059 अबोध बच्चियों के साथ दुष्कर्म हुआ। बीते साल ही बलात्कार के 86 फीसदी मामलों में पुलिस ने चार्जशीट दायर कर दी थी। पर ट्रायल कोर्ट मात्र 13 फीसदी मामलों का निबटारा ही कर पाया था। इस मामले का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि निबटाए गए मामलों में मात्र 32 फीसदी अभियुक्तों को ही सजा हो पाई थी।

फिर उपाय क्या हैऐसी बर्बर घटनाएं कैसे रूकेंइन प्रश्नों पर चर्चा से पहले उम्र के हिसाब से ग्रंथियों में होने वाले बदलावों और उनके बारे में हुए वैज्ञानिक अध्ययनों पर एक नजर डालिए। अनुसंधानों से पता चल चुका है कि लगभग आठ साल तक पीनियल ग्रंथि बिल्कुल स्वस्थ रहती है। उसके बाद दोनों भौहों के बीच यानी भ्रू-मध्य के ठीक पीछे मस्तिष्क में अवस्थित यह ग्रंथि कमजोर होने लगती है। बुद्धि और अंतर्दृष्टि के मूल स्थान वाली यह ग्रंथि किशोरावस्था में अक्सर विघटित हो जाती है। परिणामस्वरूप उस ग्रंथि के भीतर की पीनियलोसाइट्स कोशिकाओं से मेलाटोनिन हॉरमोन बनना बंद हो जाता है। इस हॉरमोन का सीधा संबंध यौन परिपक्वता से है। इस पर बड़े-बड़े शोध हुए हैं। देखा गया है कि अनुकंपी (पिंगला) और परानुकंपी (इड़ा) नाड़ी संस्थान के बीच का संतुलन बिगड़ जाता है। चावल के दाने के समान यह छोटी-सी ग्रंथि शरीर की मुख्य और बेहद नाजुक हारमोनल ग्रंथि है। विज्ञान ने इस ग्रंथि की जितनी परतें खोली हैं, उससे कहीं ज्यादा अज्ञात है।

नतीजतन, पिट्यूटरी ग्रंथि से हॉरमोन का रिसाव शुरू होकर शरीर के रक्तप्रवाह में मिलने लगता है। पीनियल और पिट्यूटरी, इन दोनों ग्रंथियों का परस्पर गहन संबंध है। सच कहिए तो पीनियल ग्रंथि पिट्यूटरी ग्रंथि के लिए ताला का काम करती है। ताला खुलते ही पिट्यूटरी अनियंत्रित होती है औऱ बाल मन में उथल-पुथल मच जाता है। समय से पहले अंगों का विकास होने लगता है और यौन हॉरमोन क्रियाशील हो जाता है। कामवासन जागृत हो जाती है। यह काम ऐसे समय में होता है, जब बच्चे मानसिक रूप से इसके लिए तैयार नहीं होते हैं। लिहाजा वे अपने को संभाल नहीं पातें। उसके कुपरिणाम कई रूपो में सामने आने लगते हैं। पीनियल ग्रंथि को आमतौर पर शीर्ष ग्रंथि कहा जाता है। तंत्र शास्त्र में आज्ञा चक्र कहते हैं। पौराणिक ग्रंथों में इसे तृतीय या तीसरा नेत्र कहा गया है। पिट्यूटरी ग्रंथि को पीयूष ग्रंथी भी कहते हैं।

यूएस नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के दस्तावेजों के मुताबिक अनेक योग और चिकित्सा संस्थानों की ओर से पीनियल ग्रंथी पर शोध करवाए जा चुके हैं। हाल ही मुंबई स्थित इंटरनेशनल अहिंसा रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीच्यूट ऑफ स्पीरिचुअल टेक्नालॉजी के निदेशक प्रताप संचेती और जोधपुर स्थित संचेती हास्पीटल एंड रिसर्च इंस्टीच्यूट के ओन्‍कोलॉजी विभाग से संबद्ध सुरेश सी संचेती का रिलेवेंस ऑफ पीनियल ग्लैंड साइंस वर्सेज रिलीजनशीर्षक से शोध पत्र प्रकाशित हुआ। इसके पहले न्यूयार्क एकेडेमी ऑफ सांसेज ने स्ट्रक्चरल एंड फंक्शनल ईवलूशन ऑफ द पीनियल मेलाटोनिन सिस्टम इन वर्टेब्रेट्सशीर्षक से शोध पत्र प्रकाशित किया था।

सभी शोधों और अध्ययनों के नतीजे यही कि पीनियल ग्रंथि विघटित होकर पिट्यूटरी ग्रंथि को क्रियाशील करती है। इससे असमय यौन सजगता आ जाती है। इस विषय में सबसे पहला वैज्ञानिक अनुसंधान अमेरिका के येल स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिक डेनिस लिचेन ने बारहवी शताब्दी में ही की थी। तब उनका निष्कर्ष था कि यह ग्रंथि मनुष्य के जीवन के लिए महत्वपूर्ण कई हॉरमोनों को प्रभावित करने की क्षमता रखती है। उनमें पिट्यूटरी भी शामिल है। लड़कियों के मामले में पीनियल ग्रंथि का क्षय होने से स्तन ग्रंथियां, डिंबाशय और गर्भाशय सभी सक्रिय हो जाते हैं, जबकि अल्पवयस्क लड़कियां समयपूर्व बदलाव से निबटने के लिए शारीरिक तौर पर तैयार नहीं रहतीं।

भागदौड़ की जिंदगी में हम इतने व्यस्त हो गए हैं कि बच्चों में आने वाले इन सूक्ष्म बदलावों को समझ नहीं पाते। बच्चा घर में रहना क्यो नहीं चाहता? वह गुमसुम क्यों रहता हैबच्चा उच्छृंखल क्यों हो गया है? उसका ज्यादा समय इंटरनेट पर क्यों बीतता है? परीक्षा में अंक कम क्यों आने लगे? इस तरह के ढ़ेरो बदलाव की ओर अक्सर ध्यान नहीं जाता। कभी किसी गलत व्यवहार की ओर ध्यान गया भी तो यह कहकर मन को समझाने की कोशिश होती है कि किसी खराब संगत का असर है। इसके साथ ही बच्चों को उनके दोस्तों से अलग करने की कवायदें शुरू हो जाती हैं। दूसरे लोग गलत या आपराधिक प्रवृत्तियों की ओर उन्मुख बच्चों के मामलों को माता-पिता के संस्कार से जोड़कर देखने लगते हैं।

दूसरी तरफ बच्चे असमय यौन भावनाओँ को संभालने की स्थिति में नहीं होते तो तरह-तरह की हरकतें करते रहते हैं। पाश्चात्य संस्कृति का कुप्रभाव आग में घी का काम करता है। किसी मॉल में अनेक मौकों पर इसकी झलक मिल जाती है। वैज्ञानिक अध्ययनों से साबित हो चुका है कि यदि पीनियल ग्रंथि युवावस्था आने तक बची रह जाए तो युवा भारत की तस्वीर कुछ और हो सकती है। क्षमताओं के रचनात्मक उपयोग से अचेतन की सुप्त संपदा मिल सकती है। प्रसुप्त जागरण हो सकता है। दूसरे शब्दों में मस्तिष्क के सुसुप्त भाग का अधिकतम इस्तेमाल से मेधा-शक्ति बढ सकती है। फिर यौन अंगो का विकास हो भी तो सब कुछ प्राकृतिक तौर पर होगा। विद्या अर्जन या कौशल विकास का स्वर्णिम काल बर्बाद नहीं होगा। समाज को शनमुग जैसा युवा मिलेगा।

जर्नल ऑफ एडुकेशन टेक्नालॉजी इन हेल्थमें एक शोध पत्र के हवाले से बच्चों पर नाड़ी शोधन प्राणायाम के प्रभावों विस्तार से चर्चा की गई है। बंगलुरू स्थित स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान ने हाल ही स्कूली बच्चों पर योग के प्रभावों को लेकर एक शोध पत्र प्रकाशित किया। इसमें भी बच्चों को नियंत्रित करके उनकी मेधा-शक्ति बढ़ाने में योग की अहमियत बताई गई है। विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय से संबद्ध योग रिसर्च फाउंडेशन ने इस पर काफी काम किया है। उसके निष्कर्षों के आधार पर दो भागों में पुस्तकें प्रकाशित हुईं। वह पुस्तक खासतौर से योग शिक्षकों के लिए है। उनमें बच्चों की अवस्थाएँ और उनके लिए योग विधियों का विस्तार से वर्णन है। इन अनुसंधानों से पता चला कि किन योगाभ्यासों के जरिए युवावस्था आने तक पीनियल ग्रंथि को स्वस्थ कैसे रखा जा सकता है।

अनेक अध्ययनों से साबित हो चुका है कि भौतिक स्तर पर इसे प्रभावित करने का कोई उपाय नहीं है। योगाभ्यासों के जरिए ही इसे स्वस्थ रखा जा सकता है। बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती से किसी साधक ने पूछ लिया था – “क्या योग से बाल अपराध रूक सकता है?” परमहंस जी ने इन पुस्तकों का हवाला देते हुए उत्तर दिया था – “बिल्कुल, बाल अपराध रूक सकता है। अपराधी बनने की बात तो छोड़ो, इसके उलट उनका त्रिनेत्र जागृत हो सकता है। इसलिए मैं कहता हूं कि योग का पहला काम पीनियल ग्रंथि को स्वस्थ रखना होना चाहिए। प्राचीन काल में इस पर ध्यान दिया जाता था। बच्चों के लिए अनुष्ठान होता था। उसमें उन्हें सूर्य नमस्कार, भ्रामरी प्राणायाम, नाड़ी शोधन प्राणायाम और गायत्री मंत्र की शिक्षा दी जाती थी। नए अध्ययनों के आधार पर इसमें शांभवी मुद्रा का अभ्यास भी जोड़ लो। समस्या का समाधान हो जाएगा।“  परमहंस जी के इसी उत्तर में अब तक हुए तमाम शोधों के निष्कर्ष समाहित हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

 

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